Sunday, July 3, 2016

रमेशराज की कहमुकरी संरचना में ग़ज़लें




रमेशराज की कहमुकरी संरचना में ग़ज़लें

+रमेशराज 
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1.
प्यारा उसे लगे अँधियार, रात-रात भर करे पुकार
मत करना सखि री संदेह, पिया नहीं, संकेत सियार।

घायल है तन, मन बेचैन, घाव रिसें औबहते नैन
झेल न पाऊँ उसका वार, क्या सखि सैंया, नहीं कटार।

जिसकी खुशबू मन को भाय, अधरों पर मुस्कान सुहाय
सखि शंका मत कर बेकार, पिया नहीं, फूलों का हार।

जो छू लूँ तो काँपे गात, तन को मन को दे आघात
क्या सखि री तेरे भरतार? ना री सखि बिजली के तार।

क्या दूँ री मैं मन की बोल, रसना में रस घुले अमोल
मिला तुझे क्या उनका प्यार? ना ना री सखि आम अचार।


2.
चीख निकलती उसको देख, चाहे दिन हो या अंधेर
मार झपट्टा लेता गेर, क्या सखि साजन? ना सखि शेर।

उसने छोड़ा तुरत वियोग, मन में उसके जागा भोग
क्या सखि साजन? ना सखि आज, अंधे के कर लगी बटेर।

ऐसे उसने डाला रंग, सोने जैसे चमके अंग
क्या ये सब साजन के संग? ना सखि आयी धूप मुँडेर।

भीगी चूनर, भीगा गात, चमके बिजुरी जी घबरात
क्या सँग साजन? ना री! मेघ, आज गया जल खूब उकेर।

आकर दो दर्शन भरतार, कब से तुमको रही पुकार
सखी रही तू साजन टेर? नहीं रही प्रभु-माला फेर।



3.
उसने मुझे उढ़ा दी खोर, मैं सखि मचा न पायी शोर
तुरत कलाई दई मरोर, क्या सखि साजन? ना सखि चोर।

क्षण-भर मिलता चैन न बाय, पल-पल केवल मिलन सुहाय
घूमे पागल-सा हर ओर, क्या सखि साजन? नहीं चकोर।

सावन में भी हँसी न नाच, अपने मन का कहे न साँच
सब बोले अँखियन की कोर, का सखि साजन? ना सखि मोर।

तन में-मन में डाले बंध, रचे विवशता के ही छंद
एक उदासी में दे बोर, क्या सखि साजन? ना सखि डोर।

सुख दे घनी रात के बाद, होता खतम तुरत अवसाद
उसका नूर दिखे हर छोर, क्या सखि साजन? ना सखि भोर।



4.
लगता जैसे खींचे प्रान, ऐसे मारे चुन-चुन वान
क्या सखि कोई पिया समान, ना ना सखि आँधी का ध्यान।

क्या करि आयी बोले लोग, कोई कहता मोकूँ रोग
क्या पति की रति आयी भोग? ना सखि मैंने खाया पान।

ये नैना देखत रह जायँ, वे तो मन्द-मन्द मुस्कायँ
क्या सखि पिया सुगंध बसायँ? ना ना फूलों की मुस्कान।

बरसें घन तो मन में तान, तन झूमे नित गाये गान
और जान में आवै जान, का सखि साजन? ना सखि धान।


अति चौड़ा है उसका वक्ष, बहुत सबल है उसका पक्ष
वह स्थिरता में भी दक्ष, का सखि साजन? ना चट्टान।



5.
मेरे ये सावन में हाल, ऊँची-ऊँची लऊँ उछाल
दिन-भर आये अति आनंद, क्या सँग साजन? ना सखि डाल।

पटकूँ पत्थर पर सर आज, नैन हुए तर, मन डर आज
मैं मुरझायी तपकर आज, क्या बिन साजन? ना सखि जाल।

मन अब दुःखदर्दों से चूर, बसी उदासी मन भरपूर
क्या सखि साजन से तू दूर? ना सखि खोयी मोती-माल।

हाल हुआ बेहद बेहाल, सम्हल-सम्हल मैं गिरूँ निढाल
पिया विरह का सखी कमाल? ना सखि कल आया भूचाल।

जल बिन तड़पै अब तो मीन, क्या बतलाऊँ हालत दीन
क्या साजन बिन ऐसा हाल? ना सखि देखे सूखे ताल।



6.
सच कहती मैं आखिरकार, मन में उमड़ी बड़ी उमंग
क्या मिल गया पिया का प्यार? ना सखि मैंने पीली भंग।

थिरकन लागे मेरे पाँव और बढ़ी पायल-झंकार
क्या सखि जुड़े पिया से तार? ना सखि सिर्फ सुनी थी चंग।

सुन-सुन बोल गयी मैं रीझ, तन क्या मन भी गया पसीज
क्या सखि पिया मिले इस बार? ना ना री सखि बजी मृदंग।

जब आयी बैरिन बरसात, दी उसने दुःख की सौगात
क्या सखि पिया संग तकरार? ना सखि लोहे देखी जंग।

नभ को छूकर यूँ मन जोश, ‘कहाँ आज मैंरहा न होश
हुआ पिया सँग क्या अभिसार? ना सखि मैं लखि रही पतंग।



7.
जैसे तैसे रातें काट, रोज भोर की जोहूँ बाट
क्या छेड़ें तेरे सम्राट? ना सखि सोऊ में बिन खाट।

देख उन्हें मैं दी मुस्काय, चैन पड़ा अपने घर लाय
मिले सजन मत जइयो नाट? ना सखि मोती देखे हाट।

भला इसी में रह लूँ दूर, पल में तन-मन करते चूर
क्या साजन हैं क्रूर कुटाट? ना ना सखि चाकी के पाट।

सखि मैं गयी स्वयं को भूल, ऐसा देखा सुन्दर फूल
क्या साजन है बड़े विराट? ना ना सखि नदिया के घाट।

कभी चाँदनी-सा खिल जाय, कभी मेघ बन मन को भाय
मिलन हुआ सखि नदिया-घाट? ना सखि नभ लखि रूप विराट।



8.
भला बढ़ाया मैंने मेल, लुका-छुपी का कैसा खेल
घावों पै नित मलती तेल, क्या संग साजन? नहीं पतेल।

घने ताप में थी खामोश, आया सावन दूना जोश
क्या सखि वहीं बढ़ाया मेल? ना सखि मेरे घर में बेल।

आये इत तो धुक-धुक होय, नींद जाय अँखियन से खोय
दे मन में झट शोर उड़ेल, क्या सखि साजन? ना सखि रेल।

मिले न काहू ऐसा संग, बार-बार जो फाटें अंग
क्या सखि ये साजन के खेल? ना सखि बेरी के सँग केल।

मैं चौंकी सखि री तत्काल, मैंने लीना घूँघट डाल
क्या साजन की चली गुलेल? वे वर ना, सखि मिले बड़ेल।



9.
बात बताऊँ आये लाज, गजब भयौ सँग मेरे आज
मेरी चूनर भागा छीन, क्या सखि साजन? ना सखि बाज।

सखि मैं गेरी पकरि धड़ाम, परौ तुरत ये नीला चाम
निकली मुँह से हाये राम, सैंया? नहीं गिरी थी गाज।

कहाँ चैन से सोबन देतु, पल-पल इन प्रानों को लेतु ,
बोवै काँटे मेरे हेतु, क्या सखि साजन? नहीं समाज।

बिन झूला के खूब झुलाय, गहरे जल में झट लै जाय
खुद भी हिचकोले-से खाय, क्या सखि साजन? नहीं जहाज।



10.
पहले मोकूँ चूम ललाम, फिर लोटत डोल्यौ वो पाम
गिरौ पेड़ से सुन सखि फूल, चल झूठी पति होंगे शाम।

चमकी चपला नभ के बीच, तुरत गयी मैं आँखें मींच
ली मैंने झट बल्ली थाम, सखि ना छुपा सजन कौ नाम।

पीत वसन में सुन्दर गात, रस दे मीठा अधर लगात
महँक उठे मन-बदन तमाम, का सखि साजन? ना सखि आम।

भरी दुपहरी पहुँची बाम, चाट गयी तन-मन को घाम
पिया मिले होंगे गुलफाम? क्या बोले सखि हाये राम!

अगर मिले तो चित्त सुहाय, पास न हो तो मन मुरझाय
रोज बनाये बिगड़े काम, का सखि साजन? ना सखि दाम।
+रमेशराज 
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001, मो.-9634551630       


Tuesday, March 29, 2016

रमेशराज की हाइकुदार तेवरियाँ





रमेशराज की हाइकुदार तेवरियाँ 
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|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी ||
-------------------------------------------1.

आज प्रेम के / सुखमय मंजर / कहीं न दीखें        [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
दरिया झीलें / जलद-समंदर / खाली-खाली हैं।        [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]

मित्र शत्रु-से / उलझन में मन / दुखः है भारी
सभी प्यार के / रतिमय अक्षर / खाली-खाली हैं।

अब रिश्तों में / अति कड़वाहट / लोग घोलते
आज नेह के / मधुमय सागर / खाली-खाली हैं।

बसा लबों पै / सघन मौन बस / नैन अश्रु हैं
खुशियों वाली / मृदुलय के घर / खाली-खाली हैं।

एक पहेली / महज बनी अब / सब सौगातें
आज दिवाली / दिन-सम उत्तर / खाली-खाली हैं।
+ रमेशराज +




|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी ||
--------------------------------------2.

चाँद-सितारे / हर मन विकसें / हसीं नजारे          [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
मंजर सारे / जन-जन के सँग / प्यारे-प्यारे हों।        [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]

नहीं रहा है / सहज विहँसना / मन दर्दों में
शोख इशारे / जन-जन के सँग / प्यारे-प्यारे हों।

आज जि़न्दगी / अविरल तम में / नूर न दीखे
घने उजारे / जन-जन के सँग / प्यारे-प्यारे हों।

नैना भरते / अब अँसुअन से / मन में पीड़ा
हसीं सहारे / जन-जन के सँग / प्यारे-प्यारे हों।

अब तूफाँ  में / तन-मन सबका / फँसा हुआ है
आज किनारे / जन-जन के सँग / प्यारे-प्यारे हों।
+ रमेशराज +



|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी ||
----------------------------------------------3.

भूल गये हैं / सुख-अभिनंदन / दर्दों में मन        [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
महँका यारो / अब कब चन्दन / तीखी बातें हैं।      [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]

आज खुशी का / सब अधरों पर / जादू गुम है
जो खुशियाँ दे / वह मकरन्द न / तीखी बातें हैं।

नये विषैले / अधर-अधर पै / गीत बसे हैं
मधुता वाले / मधुरिम छन्द न / तीखी बातें हैं।

तुझको पूजें / निश-दिन हम क्यों / थाल सजायें
तेरे मिलते / दुःखमय वन्दन / तीखी बातें हैं।

चाह यही थी / कुछ सुख मिलता / हम मुस्काते
ज्वार आज भी / कटु-कटु बन्द न / तीखी बातें हैं।
+ रमेशराज +




|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
 ---------------------------------------------4.

नाग जरुरी / बन मत कायर / आग जरूरी           [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
सारा सिस्टम / अब जन-जन को / खाये जाये है।     [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]

इन्सानों पर / अब आफत अति / सभी दुःखी हैं
अन्जाना ग़म / अब जन-जन को / खाये जाये है।

खल-उत्पाती / जन-जन में दुःख / सब आघाती
फैला मातम / अब जन-जन को / खाये जाये है।

बोल प्यार के / सहज नहीं अब / सब उन्मादी
अंधा मौसम / अब जन-जन को / खाये जाये है।

मौन रहेगा / यदि तू पल-पल / दर्द सहेगा
सत्ता का यम / अब जन-जन को / खाये जाये है।
+ रमेशराज +



|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
-------------------------------------------------5.
मत रो प्यारे / कल यह सम्भव / मिलें किनारे        [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
खुशियाँ आयें / चल बढ़ता चल / तू मुसकायेगा।       [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]

कर ले चप्पू / रख हिम्मत कुछ / नाव बढ़ा रे
रंगीं मंजर / अब तो पल  पल / होता जायेगा।

बढ़ता आ रे / सुखद-सुखद ही / दिखें नजारे
दुःख पायेगा / इस तम से अब / जो घबरायेगा।
हैं अँधियारे / इनसे डर मत / दीप जला रे
गीत नूर के / फिर यह मौसम / प्यारे गायेगा।
आज भले ही / बुरा समय पर / ना घबरा रे
छोड़ा साहस / तो यह तय सुन / मातें खायेगा।
+ रमेशराज +



|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
------------------------------------------------------------6.
लोग न बोलें / अगर मुखर हों / विष ही घोलें       [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
नेह-प्यार के / वचन आजकल  / बोलें हत्यारे।        [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]
इतना रिश्ता / अब सब रखते / जेब टटोलें
आज लालची / जिधर लखें हम / सारे के सारे।
'गौतम' बोलें / पल-पल खुद को / आज गिलोलें
छुपे हुए हैं / महज आजकल / फूलों में आरे।
प्रेम-कथा में / अब दुःख मिलता / जितना खोलें
इन ग्रन्थों का / छल-फरेब-मय / पन्ना-पन्ना रे।
अब है इच्छा / जगत देखकर / हम भी रो लें
प्रश्न यही है / दुःख में हँसकर / क्या होगा प्यारे!
+ रमेशराज +



|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
-------------------------------------------7.
आज भले ही / हम बिन सावन / रुठे हैं मेघा         [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]
अब है सूखा / कल मरुथल में / जल देखेंगे।          [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
अँधियारे में / विहँस परस्पर / दीपों को वारें
आज दुःखी हैं / सुख को मुख पर / कल देखेंगे।
मात उसे दें / भर साहस हम / मुण्डी झाडेंगे
आये कल को / हम उसके सब / बल देखेंगे।
नहीं झुकेंगे / खल के सम्मुख / तीखा बोलेंगे
कायरता को / पल-पल तजते / खल देखेंगे।
यही कहानी / और न सब हम / यारो पायेंगे
नहीं पतंगे / अब दीपक पर / जल देखेंगे।
+ रमेशराज +



|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
---------------------------------------------8.
मन में पीड़ा/ सब कुछ दुःख में / तन में पीड़ा       [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
मुस्कानों पै / अब रहती बस / दर्दों की छाया।         [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]
बादल आँखें / पल-पल बरसें / घायल आँखें
मृदुगानों पै / अब रहती बस / दर्दों की छाया।
दर्द घोलती / निर्धन-घर अब / भूख डोलती
सुख-खानों पै / अब रहती बस / दर्दों की छाया।
कथा सुखों की / बदल बनी अब / कथा दुःखों की
मधु तानों पै / अब रहती बस / दर्दों की छाया।
खुशियाँ रूठीं / बस आफत बन / सब पै टूटीं
अनुमानों पै / अब रहती बस / दर्दों की छाया।
+ रमेशराज +


|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
-------------------------------------------9.
केवल वादे / अजब सियासत / कुछ भी ना दे         [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
सिर्फ कागजी / सुविधा जन तक / क्या मुस्कायेंगे !   [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]
बनें न नाती / इस युग आकर / सब हैं दादे
छील दिये हैं / सब ही मन तक / क्या मुस्कायेंगे !
बोझ पीठ पै / जन-जन अपनी / अब हैं लादे
बोझा पहुँचा / सबके तन तक / क्या मुस्कायेंगे !
कहीं न दीखें / अब संसद तक / नेक इरादे
नेता पहुँचे / जन-गर्दन तक / क्या मुस्कायेंगे !
दीपक सारे / अगर जल उठें / हो उजियारा
अंधकार है / आज नयन तक / क्या मुस्कायेंगे!
+ रमेशराज +


|| रमेशराज की हाइकुदार तेवरी
-------------------------------------------10.
भोली जनता / लुटती हरदम / कैसा सिस्टम ?        [ 5/7/5 वर्ण , 24 मात्राएँ ]
लूट मचायी / अब संसद तक / नेता ने भारी।         [ 5/7/5 वर्ण , 26 मात्राएँ ]
मन की आशा / पिसती हरदम / कैसा सिस्टम ?
पीर बढ़ायी / अब संसद तक / नेता ने भारी।
लाश वफा की / दिखती हरदम / कैसा सिस्टम ?
छुरी चलायी / अब संसद तक / नेता ने भारी।
पैंठ छलों की / मिलती हरदम / कैसा सिस्टम ?
पीर बुलायी / अब संसद तक / नेता ने भारी।
जनता फाके / करती हरदम / कैसा सिस्टम ?
पी चिकनायी / अब संसद तक / नेता ने भारी।

+ रमेशराज +